विपरीत दिशा कितनी हसीन चल रही थी जिंदगी
पर चंद लोभियों ने
उजाड़ दिया मेरा आशियाना
रीति रिवाज के नाम पर
कई सालों से खोखला कर रहे थे
भविष्य का खजाना
आंख अब खुली तो
देखा मैंने अपनी हैसियत को
शायद तिनकों में भी नहीं
गिनेगा नाम कोई मेरा
इसलिए चुन लिया मैंने
राह विपरीत दिशा की
पता नहीं कहा ले जायेगी
कम से कम अपने कहलाने वाले
नागों से शायद जिंदगी बच जायेगी।
©Rakesh Kumar Das
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