तन्हा ज़िंदगी में मेरी दुनिया बन आ जाओ
हमसफ़र रह-रवान-ए-तमन्ना बन आ जाओ।
निगाहों को मिले तेरे दीदार से राहत-आराम
इस क़दर लज़्ज़त-ए-नज़ारा बन आ जाओ।
शमा जाने कहाॅं है नदारद है मुझसे ख़फ़ा
तीरगी सी ज़िंदगी में उजाला बन आ जाओ।
थक चुकी ज़िंदगी का सफ़र तन्हा तय करते
बेदर्द जीस्त का तुम सहारा बन आ जाओ।
मझधार में कश्ती मेरी दिखें न कोई रास्ता
मेरी इस कश्ती का किनारा बन आ जाओ।
ऑंसुओं के सैलाब से धुॅंधली हो गई निगाहें
हो ख़्वाब पूरा चश्म-ए-बीना बन आ जाओ।
उल्फ़त में तुम्हें बस यही कसम देती 'अर्चना'
तुम इश्क़ हो मेरा फ़क़त मेरा बन आ जाओ।
©Archana Verma Singh
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