अक्सर पूछा जाता हैं मुझसे, तुम इतनी चायप्रेमी कैस | हिंदी कविता

"अक्सर पूछा जाता हैं मुझसे, तुम इतनी चायप्रेमी कैसे हो? में भी पलके झुका के पूछती हूं उनसे, चाय से प्रेम कैसे ना हो? चलो आज राज़ बयान किया जाए, नानाजी का चाय का ठेला था, बचपन की यादों को फिर से जिया जाए ठेले को होटल में बदलने वाला वो इंसान अकेला था। अक्सर मां कहा करती गुडिया, चाय पीने से काले होते हैं, और में शैतान छुप के चाय पिया करती , और सोचती मेरे दिल में तो उजाले होते हैं। चाय मेरे लिए बचपन की सबसे खूबसूरत यादों में है, जब भी इसे पिए उस सुकून का जवाब नहीं हैं बातों में। ©Harshita Wadhwani"

 अक्सर पूछा जाता हैं मुझसे, 
तुम इतनी चायप्रेमी कैसे हो?
में भी पलके झुका के पूछती हूं उनसे, 
चाय से प्रेम कैसे ना हो? 

चलो आज राज़ बयान किया जाए,
नानाजी का चाय का ठेला था,
बचपन की यादों को फिर से जिया जाए 
ठेले को होटल में बदलने वाला वो इंसान अकेला था। 

अक्सर मां कहा करती 
गुडिया, चाय पीने से काले होते हैं,
और में शैतान छुप के चाय पिया करती ,
और सोचती मेरे दिल में तो उजाले होते हैं। 

चाय मेरे लिए
बचपन की सबसे खूबसूरत यादों में है,
जब भी इसे पिए 
उस सुकून का जवाब नहीं हैं बातों में।

©Harshita Wadhwani

अक्सर पूछा जाता हैं मुझसे, तुम इतनी चायप्रेमी कैसे हो? में भी पलके झुका के पूछती हूं उनसे, चाय से प्रेम कैसे ना हो? चलो आज राज़ बयान किया जाए, नानाजी का चाय का ठेला था, बचपन की यादों को फिर से जिया जाए ठेले को होटल में बदलने वाला वो इंसान अकेला था। अक्सर मां कहा करती गुडिया, चाय पीने से काले होते हैं, और में शैतान छुप के चाय पिया करती , और सोचती मेरे दिल में तो उजाले होते हैं। चाय मेरे लिए बचपन की सबसे खूबसूरत यादों में है, जब भी इसे पिए उस सुकून का जवाब नहीं हैं बातों में। ©Harshita Wadhwani

हा , में चायप्रेमी हूं।

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