प्रेम का बदलता स्वरूप
दिखावा करके प्रेम का जो मन के किसी को छलता है,, भावनाओं को रौंदकर जो शरीर के टुकड़े करता है ।
पिशाची ऐसी सोच है जो प्रेम को हथियार समझता है ,, वक्त आने पर उसे प्रेम के टुकड़े करने से भी नहीं डरता है।
प्रेम की इतनी पवित्र परिभाषाएं है जिस देश में,,
उस प्रेम की परिभाषा को बदलने की हिम्मत रखता है। पिशाची है वह इंसान जो प्रेम को भोग विलास की वस्तु समझता है।
क्या सच में प्रवेश है यह कलयुग का कि इंसान ,इंसान को मारकर उबालने लगता है ।
दुनिया में धर्मगुरु की छवि रखने वाले देश में अधर्म बढ़ता ही जाता है ।
स्त्री की अस्मिता बचाने जहां रावण और दुर्योधन के विरुद्ध खुद भगवान उतर आए,,
ऐसे देश में हर मिनट एक औरत का इज्जत लूटता है।
मिट रही है लोगों में इंसानियत ,,
गलत होता देखकर भी नजर चुरा कर निकलते हैं ।
खुलेआम मर रही है साक्षी,,
और लोग झंझट में पढ़ने से डरते हैं ।
लग रहा है दुनिया इंसानों की नही पिशाचों की हो गई है ,,
तभी इंसानियत और प्रेम को लोग पैरों तले कुचलते हैं।
#प्रेम का बदलता स्वरूप