कविता कौन जानता है
कौन भिखारी, कौन सिकंदर इस जहां में, कौन जानता है।
इस आवाम में कौन गलत है कौन सही है, कौन जानता है।
इस चोर बाजार में चोरों की है हदे,
कौन जानता है।
खादी में छुपे सियारों की चालाकी को ,कौन जानता है।
राजनेताओं की राजनीति में, राज की बात कौन जानता है।
इस बेगानी दुनिया में ,अपनों को कौन जानता है।
स्वार्थ के बनते रिश्ते, रिश्तो में स्वार्थ कौन
जानता है।
निरंजन सैन
अलवर
©Niranjan Sain