काश तुम होते तो सावन होते
तुम होते तो मेरी महफ़िल में भी रंग होते
भावनाओं के प्रतिबिम्ब में यथार्थ के गीत होते
कुछ मेरे हिस्से के संघर्ष तुमने जिए होते
अगर होते तो कमजोर मन का स्तम्भ बन
कभी न कभी तो खडे होते
निज मन की व्यथाओं को हौसला
देते
होते अगर तो बाँटते
थोड़ी ख़ुशी और थोड़े से गम
कितने भी न होते पर कही न कही तो अड़े होते
"मैं हूँ न" कह कर कभी तो मन को छुए होते
मन की उथलपुथल पर कभी तो धीरज दिए होते
काश तुम होते तो मेरे भी सावन होते
©Pratibha Singh