कभी तो ख़्वाब में आओ कि रात भारी है
बुझे चराग़ जलाओ कि रात भारी है
मेरी उम्मीद की दुनिया है सूनी सूनी सी
ज़रा सी आस बँधाओ कि रात भारी है
मिरा वजूद उदासी की एक परछाई
मिरी हयात पे छाओ कि रात भारी है
नफ़स नफ़स में तमन्ना कि हिचकियों की कसक
रुख़-ए-जमील दिखाओ कि रात भारी है
ये नींद है ज़रा देखो सुकून-ए-मर्ग न हो
मरीज़-ए-ग़म को जगाओ कि रात भारी है
ख़मीदा पलकों पे तारों का बोझ कैसा है
निगाह-ए-नाज़ उठाओ कि रात भारी है
चमन-तराज़ी-ए-चश्म-ए-हसीं की तुम को क़सम
कफ़न पे फूल सजाओ कि रात भारी है
ख़याल-ए-'अख़्तर'-ए-मरहूम से भी बाज़ आओ
दयार-ए-हुज़्न से जाओ कि रात भारी है (अख्तर )
©Ramesh Puri Goswami (ravi)
# रात भारी है! #
#Moon