वो शाम तेरे शहर की,
गज़ब है एक लहर सी..
मेरी ग़ज़ल से होती हुई,
हो जाती है ठहर सी..
पहर वो रात का,
काला आसमान नज़र आता है..
बेवफ़ाई का बादल आता,
और बरसात करके चला जाता है..
मेरी आंखों का पानी,
तेरी गलियां बना देता है नहर सी..
मेरी ग़ज़ल से होती हुई,
हो जाती है ठहर सी..