पेड़ो ने भी गिरा दिए
पत्ते ये कहकर
अब इन्हें भी तजुर्बा हो
कुछ मौसम ए बहार का
वो अक्सर मिलता है कहता कुछ नहीं
एहसास हो जाता है फिर भी
दर्द ए यार का
हुनरमंद बंद है कांच के शीशे में
सोने का पिंजरा है मंजिल
मिले उसे जो हो बेकार का
तुम यू ही भागते हो पानी के लिए
रेगिस्तान है ये , जिसे कहते हैं
चश्मा ए नूर प्यार का
चश्मा ए नूर