अरे कबूल है मुझे तेरा हर सितम चाहे तू राख कर मुझे | हिंदी Poetry
"अरे कबूल है मुझे तेरा हर सितम
चाहे तू राख कर मुझे
बेगानों से भी किस बात का गम
शर्मिंदा लाख कर मुझे
इन दर्दों से भी गहरे हौंसले हैं मेरे
तू जख्मी बेबाक कर मुझे
घिस जाने दे चाबुक नफरतों वाला
मेरे बदन पर पाक कर उसे "
अरे कबूल है मुझे तेरा हर सितम
चाहे तू राख कर मुझे
बेगानों से भी किस बात का गम
शर्मिंदा लाख कर मुझे
इन दर्दों से भी गहरे हौंसले हैं मेरे
तू जख्मी बेबाक कर मुझे
घिस जाने दे चाबुक नफरतों वाला
मेरे बदन पर पाक कर उसे