जिंदगी का ये कैसा सफर है,
लगे ये दुनिया ग़मो का घर है।
माना रिश्तों को दौलत जिसने,
हुआ वही यहाँ तो दर-बदर है।
अपने ही अपने में खोए हैं सभी,
न किसी को किसी की फ़िकर है।
बातें छाँव की यार जो कर रहा,
वही तो काटे जा रहा शज़र है।
जिसने जीवन दिया है 'उजाला',
उन्हीं के आगे झुका ले तू सर है।
©अनिल कसेर "उजाला"
फ़िकर