जिंदगी जीने की आरजू में दूर तलक चले आए
कुछ सांसे उधार के, कुछ बातें जुबां पे ले आए
जिसने जो कहा सुन लिया, बिना पूछे तुम कौन हो
सब जब थकने लगे तो साथ देने भी चले आए
जिसने जो दर्द बांटा सिमटा लिया खुद मे
कभी जो खुद को देखा आईने में
तो मुस्कुराता चेहरा भी पूछने लगा
कौन है यहां तेरा जिसके लिए तुम खुद मे हो मुरझाए
हंसते तो हो तुम सबके साथ क्या खुद के लिए भी रो पाए
ना आरजू ना उम्मीदें किसी से
खुद के लिए खुद ही रो पड़े हैं
ये जान कर की तुम किसी और के लिए तो सब किए
पर क्या खुद के लिए भी कुछ कर पाए
©Mahiya Mahi
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