सब कुछ छोड़ आए हैं....
कहानी के कुछ राज हमने
अब तक सबसे छिपाए हैं,
शहर की सुविधाओं के लिए,
गांव की धूल छोड़ आए हैं,
नया इक संसार सोच कर,
पुराने घर की वह दहलीज छोड़ आए हैं,
सोचते हैं अक्सर धूप को देखकर,
पीपल की वहां छांव छोड़ आए हैं,
इतनी जल्दी में थे कि,
इक गुलाब के लिए,
पूरा का पूरा बगान छोड़ आए हैं,
जहां निःसंकोच पंडित जी चढ़ाते थे,
हमारे नाम के फूल,
अनजाने में हम वह शिवालय छोड़ आए हैं।
©Shreya Shukla