एक काली घनी रात थी
बिछी हर तरफ बिसात थी
मोहरो में कुछ प्यादे थे
कुछ काले थे कुछ सादे थे..
कोई ढाई घर से वार करे
कोई सीधा खंजर पार करे
कोई छुपा हुआ चालाक यहां
कोई सामने से हुंकार भरे..
हर कदम शय और मात है
लगाए हर कोई बैठा घात है
होता खेल ये षडयंत्रों का
हम तो बालक दिल के साफ़ है...
©smita@ishu
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