ये रास्ते मुझे कहा ले चले,
अकेली हूं डर लगता हैं,
टूट न जाऊं मैं, सफर में छूट न जाऊं मैं,
मंजिल मिलेगी? या कही भटक न जाऊं मैं,
अंधेरे में एक रोशनी की किरण है,
वो है मेरी इक उम्मीद,
कितना तो सफर तय कर लिया है,
पता नही क्यों फिर भी मन में डर सा है,
कर रही मैं जितना मुझसे हो रहा,
फिर भी मैं कभी कभी हार जाती हूं,
निराश हूं खुद के प्रयासों से नही संतुष्ट मै,
नही दे पा रही अपना 100%,
क्या करू समझ नही आ रहा,
पर मैं प्रयास कर रही हूं,
हार नही मानूंगी,
जितना कर सकूंगी सपनो को पाने के लिए,
मैं करूंगी
मैं जीतूंगी।
©__aastha__
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