किसी दरख्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं, मु | हिंदी कविता Video

"किसी दरख्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं, मुसलसल आँधियों में जूझती हुई लौ-सा हूँ मैं, है सब यहाँ, पर मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं, अपने ही घर में कुछ खोया-कुछ गुम-शुदा-सा हूँ मैं, मेरे तौर-तरीकों से बड़े परेशान रहते सब आज-कल, कहते हैं लोग कि कुछ ऐसा कुछ वैसा हूँ मैं मेरी कामयाबी की देते है यहाँ लोग मिसालें बहुत, लेकिन अपनी ही खामियों का गड़ा एक फ़साना-सा हूँ मै ज़माना हुआ, नहीं पूछा किसीने मुझसे हाल तक मेरा, सिर्फ एक माँ ही हर रोज़ पूछती है की कैसा हूँ मैं। ©Sanjay Rao "

किसी दरख्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं, मुसलसल आँधियों में जूझती हुई लौ-सा हूँ मैं, है सब यहाँ, पर मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं, अपने ही घर में कुछ खोया-कुछ गुम-शुदा-सा हूँ मैं, मेरे तौर-तरीकों से बड़े परेशान रहते सब आज-कल, कहते हैं लोग कि कुछ ऐसा कुछ वैसा हूँ मैं मेरी कामयाबी की देते है यहाँ लोग मिसालें बहुत, लेकिन अपनी ही खामियों का गड़ा एक फ़साना-सा हूँ मै ज़माना हुआ, नहीं पूछा किसीने मुझसे हाल तक मेरा, सिर्फ एक माँ ही हर रोज़ पूछती है की कैसा हूँ मैं। ©Sanjay Rao

#Sukha #maa

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