किसी दरख्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं,
मुसलसल आँधियों में जूझती हुई लौ-सा हूँ मैं,
है सब यहाँ, पर मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं,
अपने ही घर में कुछ खोया-कुछ गुम-शुदा-सा हूँ मैं,
मेरे तौर-तरीकों से बड़े परेशान रहते सब आज-कल,
कहते हैं लोग कि कुछ ऐसा कुछ वैसा हूँ मैं
मेरी कामयाबी की देते है यहाँ लोग मिसालें बहुत,
लेकिन अपनी ही खामियों का गड़ा एक फ़साना-सा हूँ मै
ज़माना हुआ, नहीं पूछा किसीने मुझसे हाल तक मेरा,
सिर्फ एक माँ ही हर रोज़ पूछती है की कैसा हूँ मैं।
©Sanjay Rao
#Sukha #maa