जिस महफ़िल से मैं आज रूबरू हुईं, उस महफ़िल का ये मंजर था,
लबों पे तारीफ़ थी सबके और हाथों में सबके खंजर था,
मैं सोचती रही कि आखिर क्या सच है और क्या छलावा,
लोग अपने ही तो थे महफ़िल में बस एक मेरे अलावा,
आखों में मेरे तो प्यार का समंदर था,
फिर जाने क्यों लोगों के बाहर कुछ और कुछ अलग ही उनके अंदर था।
©bohra Kavita
#Lights