White विचारों की गलियों में,
सुर्ख होता रहे ये मन।
जो दिखे तस्वीरों में,
उन्हें झांक देखने का कर जतन।
पता है इस बावरे को,
कि कुछ न हासिल होने को है।
फिर भी बेकरार डुबकी को,
कि डूबने का मज़ा कुछ तो है।
कौन समझाए इस मन को,
कि जो ये सोचे वो भ्रम है।
समंदर समझा है पानी का जिसको,
वो समंदर शीशे का है।
जब टूटेगा इसका ये भ्रम,
तब भी ये काबू न होगा।
छोड़ देगा यहीं यह भ्रम,
नई तृष्णा को ढूंढता होगा।
©Shubham36
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