दिन कुछ इस तरह गुजर रही हूं मे
जैसे दिन पर कोई एहसान गुजर रही हूं मे
दिन से रात 'रात से दिन बस यही सिलसिला चला रही हूँ मे
खुद को कैद एक कमरे में..
मे खुद, गुन गुनाई जा रही हूं मे
छोड़ दुनिया दारी को मे खुद मे
सिमटी जा रही हूँ मे
दिन कुछ इस तरह गुजराती जा रही हूं मे
©muskan gupta
#Tulips