रस्मन ना करो यार तुम वफ़ा हमसे,
नही चाहता मैं तासीर ए सूरत तुमसे।
इश्क़ में बीमार को रक़ीब का दीदार,
उफ़ ये हुनर ए चारासाज़ी, कसम से।
तुम चन्द ख़्वाब होते तो क्या बात थी,
मर चुका हूँ देखो मैं तुम्हारे ग़म से।
ख़ुदा बख्शे तुम्हें लहज़ा तल्ख़ अब,
सम्भलता नही ये ज़हर मीठा हमसे।
Suraj Sharma
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