जय जय शनि देव
शनि, ग्रह व देवता दोनों रूप में पूजे जाते हैं। शनि व्यक्ति को उसके अच्छे व बुरे कर्मो का फल प्रदान करते हैं। इसी कारण इन्हें कर्म दंडाधिकारी का पद प्राप्त है। यह पद उन्हें भगवान शंकर से प्राप्त है। मूलतः शनि कर्म प्रधान ग्रह है जिसका पुराणों ने साकार दार्शनिक चित्रण किया है। शास्त्रनुसार शनि के अधिदेवता ब्रह्मा व प्रत्यधिदेवता यम हैं। कृष्ण वर्ण शनि का वाहन गिद्ध है व यह लोह रथ की सवारी करते हैं। शनि ने अपनी दृष्टि से पिता सूर्य को कुष्ठ रोग दे दिया था। कहते हैं जिन पर इनकी कदृष्टि पड़ती है, वो राजा से रंक बन जाता है। देवी-देवता तक इनसे प्रकोप से डरते हैं, लेकिन दोस्तों सबको को सजा देने वाले शनि देव को भी एक बार 19 साल तक उल्टे लटकना पड़ा था।
©Sanyukta Kumari
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