है कोटि नमन भारत वीरों हैं धन्य तुम्हारे मात,पिता।
है धन्य ये भारत की माटी कर्तव्य पे कर दी जान फिदा।।
वो लहू धन्य है भारत का जिसकी भी तुम संतान हुए।
वो कोख धन्य है माता की जिसकी खातिर कुर्बान हुए।।
कैसे कैसे कष्ट सहे तब जाकर हम आजाद हुए।
सब कुछ वार दिया मां हित पर महल हो या प्रासाद हुए।।
आजादी के मिलते ही सब अपनी अपनी धागें।
जैसे भूखा नंगा कोई खाना लेकर भागे।।
आज हुआ क्या हाल देश का और आगे क्या होगा।
ये सब देख सोच कर वीरो दिल तो रोता होगा।।
सदियां बीती गई गुलामी मन से गुलाम अब भी हैं।
कर्तव्य नहीं अधिकार, जलन चर्चा ए आम अब भी है।।
ये ही कारण थे पहले भी जब एक गुलामी पाई।
जब आदत पड़ गई गुलामी बार बार घर आईं।।
अब भी कुछ हालाlत है ऐसे तुम होते तो चुप नहीं रहते।
निश्चित फिर बंदूक उठाते फिर से लहू के नाले बहते।।
तब आसान था लड़ना क्योंकि शत्रु थे बाहर वाले।
अब तो शत्रु आस्तीन में नाग बने बैठे काले।।
जिसकी जितनी जिम्मेदारी उतना वही निकम्मा है।
अहसान दिखाते हैं माटी पर भूल गए कि अम्मा है।।
पहले कुछ थे आज अधिकतर स्वार्थ में इतने अंधे हैं।
मां बहिनों को भी बेचें ऐसे गोरख धंधे हैं ।।
©Aashutosh Aman.
#वंदेमातरम्