Freedom आज़ाद ख्यालों का एक परिंदा
हवा में उड़ता जाए
जितना ऊंचा उड़ता जाता
उसके पंख कतर दिए जाए
अपनी मर्जी करना चाहे
बिना किसी को ठेस लगाए
जब तक सबको मर्जी से वो
लेता अपनी हर सांस
तब तक भी उसे समझे ना कोई
बस अपनी निकाले सब मन की आस
सबकी सुनते सुनते अब वो खुद को भी भूल गया
तब भी कोई कीमत न समझी उसकी इतना वो भी समझ गया
अपने घर में मजदूरों सी हालत रही उसकी
सबका मन रखते रखते वो भीतर से खुद मर गया
अब उठा है फिर सोचा खुद को करना है फिर जिंदा
फिर से उड़ जाना चाहता है आजाद ख्यालों का परिंदा
©Savita Nimesh
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