#FourLinePoetry चाहा भी, चाहा भी नहीं, ये नामुमकि | हिंदी Poetry

"#FourLinePoetry चाहा भी, चाहा भी नहीं, ये नामुमकिन सा लगता है। हंसना संग में, गाल फुलाना, ये कैसे हो सकता है। ©Kalpana Tomar"

 #FourLinePoetry  चाहा भी, चाहा भी नहीं,
ये नामुमकिन सा लगता है।
हंसना संग में, गाल फुलाना,
ये कैसे हो सकता है।

©Kalpana Tomar

#FourLinePoetry चाहा भी, चाहा भी नहीं, ये नामुमकिन सा लगता है। हंसना संग में, गाल फुलाना, ये कैसे हो सकता है। ©Kalpana Tomar

हंसना संग में गाल फूलना...........
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