तुं नहीं तो अब तेरी गालियां ही सही....
तेरी गलियों में है, अब अभी आना-जाना मेरा,
तुं नहीं तो अब तेरी गालियां ही सही,
आज भी है यहां निशानियां तेरी,
देख कर उन्हें ही जीभर के जी लेते हैं,
तेरी गलियों में है, अब अभी आना-जाना मेरा।
रह-रह कर याद आते हैं पल वो ज़िंदगी के,
जब पेड़ की ओट में छुप-छुप हर दिन,
देखा करते थे दिन-रात आपको हम,
कभी पागल, कभी आवारा समझतीं थीं जब तुम,
रह-रह कर याद आते हैं पल वो ज़िंदगी के।
याद है अब भी मुझको मुलाकात वो पहली,
जब नज़रें मिली, तब नज़रें झुकीं थी,
बात कर न सकीं थीं, शरमा कर तब तुम मुझसे,
फिर मिलने का वादा कर, मिली न कभी मुझसे,
याद है अब भी मुझको मुलाकात वो पहली।
तेरी गलियों में है, अब अभी आना-जाना मेरा,
तुं नहीं तो अब तेरी गालियां ही सही,
तुं नहीं तो अब तेरी गालियां ही सही।
©Anchal Ojha
तुं नहीं तो अब तेरी गालियां ही सही....
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