वाणी की देवी हर कण में हर मन में
की जो मानता है उस देवी को
जो बसी है हर उस कण कण में
वो बसी हैं हर उस जन मन में
की वो पुस्तकों से लेकर उन किताबों में हैं
वो बैग से लेकर उस कलम में हैं
वो उस काले बोड से लेकर उस काली स्लेट में
है वो सफेद चोक लेकर उस रंगीन नोक में है
वो उस पेंसिल से लेकर उस रबर में हैं
वो शब्दों से लेकर हर शब्दांशो में हैं
वो हर ध्वनि में हैं वो हर वाणी में है
वो हर कहानी से लेकर हर उस किरदार में है
वो आन में हैं वो मान में हैं वो हर सफ़लता के सम्मान में हैं।
©–Muku2001
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