बचपन और शैतानी बचपन मेरा बीत गया है
यादों में वह बदल गया है
खुला जमाना मस्ती भर लम्हों का ,
अब जीवन मेरा सिमट गया है
बचपन मेरा बीत गया है।
गांव की गलियां शोर मुग्ध थी
यारों में मशहूर हुए थे
चलते फिरते अंदाज में अपने
औरों में आतंक हुए थे
अब याराना सुनसान खड़ा है
बचपन मेरा बीत गया है।
अधूरे कपड़े, अधूरा स्वाद ,
जीने में बस धूल भरी थी
गिर कर चलना, उठकर चलना,
पैरों में बस दौड़ भरी थी
अब राहों से भटक रहा हूं
बार-बार क्यों अटक रहा हूं
बचपन मेरा बीत गया है।
ना जीवन का तोल किया था
ना काम का अपना बोध किया था
वक्त जहां खामोश खड़ा था
जिम्मा भी बेकार पड़ा था
अब अपनों से फिसल रहा हूं
भीड़ से कितनी दूर खड़ा हूं
बचपन मेरा बीत गया है।
©Raju gujarati