माँ
देकर वात्सल्य जीवन भर कुछ नहीं मांगती है माँ !
लोगों से नौ महीने ज्यादा बच्चे को जानती है माँ !!
न्यायपालिका-कार्यपालिका-विधायिका से भी लड़कर,
निर्भया को भी इन्साफ दिलाकर मानती है माँ !
चाहे खुद बह जाये किनारा लगने से पहले,
बच्चे के लिये हर मंझधार लांघती है माँ !
बच्चों के अरमान ख़ाक में न मिल जाये,
इसके ख़ातिर दर-दर ख़ाक छानती है माँ !
मन से ममता बरसा-बरसाकर बच्चों में,
प्रथम गुरु बन बच्चे को बनाती, जो ठानती है माँ !
चेहरा जल जाये चाहे तेज़ाब से भी तो भी,
हजारों की भीड़ में भी औलाद को पहचानती है माँ !
तू कितना भी डांट ले 'दीपक' को,
तेरी आँचल तले ही स्वर्ग-सी शांति है माँ !
-दीपक क्रांति
©DEEPAK KRANTI
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