राह के मुसाफिर बाट जोहते रहे धूल दूर तक उडी गुब

"राह के मुसाफिर बाट जोहते रहे धूल दूर तक उडी गुबार देखते रहे...... पीले पडे मरू मे आशा की कोंपले देखें बरखा की एक बूंद को गगन मे तकते रहे धूल दूर तक उडी....."

 राह के मुसाफिर 
बाट जोहते रहे 
धूल दूर तक उडी 
गुबार देखते रहे......  

पीले पडे मरू मे 
आशा की कोंपले देखें
बरखा की एक बूंद को 
गगन मे तकते रहे 
                 धूल दूर तक उडी.....

राह के मुसाफिर बाट जोहते रहे धूल दूर तक उडी गुबार देखते रहे...... पीले पडे मरू मे आशा की कोंपले देखें बरखा की एक बूंद को गगन मे तकते रहे धूल दूर तक उडी.....

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