अमूर्त को रूप मूर्त देने लगा हूं.. आजकल शीशे को | हिंदी शायरी

"अमूर्त को रूप मूर्त देने लगा हूं.. आजकल शीशे को सूरत देने लगा हूं.. खुमारीयां है इश्क़ कि ये या वहम है मेरा पर उसके लिए मैं खुद को ज़रूरत देने लगा हूं... ..✍️✍️ प्रेम ©premchoudhary"

 अमूर्त को रूप मूर्त देने लगा हूं.. 

आजकल शीशे को सूरत देने लगा हूं..

खुमारीयां है इश्क़ कि ये या वहम है मेरा 

पर उसके लिए मैं खुद को ज़रूरत देने लगा हूं...
     
                                         ..✍️✍️ प्रेम

©premchoudhary

अमूर्त को रूप मूर्त देने लगा हूं.. आजकल शीशे को सूरत देने लगा हूं.. खुमारीयां है इश्क़ कि ये या वहम है मेरा पर उसके लिए मैं खुद को ज़रूरत देने लगा हूं... ..✍️✍️ प्रेम ©premchoudhary

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