जब सफ़र में चलना शुरू किया तो फिर क्या उलझन और क्या सुलझन सब का टट्ट के सामना किया।
हर कठ्ठनाईओ को पार किया,
बस कुछ ऐसे ही खुद पे विश्वास रख के आगे बढ़ना सीखा।
बस ऐसे ही गिरते-संभलते हुए भी आगे बढ़ते रहे हम,
अपनी मंजिल को पाना ही हमारा मक़सद रहे अब।
©$#UB#@NG!
# मंजिल पाना ही मक़सद रहा।
---$#UB#@NG!(Shubhangi)