ना जाने कब का आईना था वहो जिस पर कई मन धूल पड़ी थ | हिंदी Shayari

"ना जाने कब का आईना था वहो जिस पर कई मन धूल पड़ी थी पता नहीं कैसे वह शख्स उस आईने को देखकर सवर्ता रहा ©Abshar"

 ना जाने कब का आईना था वहो
जिस पर कई मन धूल  पड़ी थी
पता नहीं कैसे
वह शख्स उस आईने को देखकर सवर्ता रहा

©Abshar

ना जाने कब का आईना था वहो जिस पर कई मन धूल पड़ी थी पता नहीं कैसे वह शख्स उस आईने को देखकर सवर्ता रहा ©Abshar

#आईना

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