मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं
अंध तम के भाल पर पावक जलाता
बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता
पर, न जानें, बात क्या है !
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इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,
सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है,
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फूल के आगे वही असहाय हो जाता
शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता
विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से !!
- समधारी सिंह दिनकर
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