Black ...और मैं बार-बार नये नये रूपों में
उमड़-उमड़ कर
तुम्हारे तट तक आयी
और तुमने हर बार अथाह
समुद्र की भाँति
मुझे धारण कर लिया
विलिन कर लिया-
फिर भी अकूल बने रहे
मेरे साँवले समुद्र
तुम आखिर हो मेरे कौन
मैं इसे कभी माप
क्यों नहीं पाती ?
_ धर्मवीर भारती
©probably me.
poetry