मैं नादान हुँ न,
इसलिए मुस्कुराती बहुत हुँ,
दूसरो से अपनी तकलीफ को,
छुपाती बहुत हुँ,
जब हो जाती हैं आँखे नम,
तब लोगो से मिलाती कम हुँ,
क्या करू नादान हुँ न,
इसलिए मुस्कुराती बहुत हुँ...
उजाले में घबरा,
अँधेरे में सुकुन पाती अब हुँ,
दूसरो पर विश्वास कर,
डर से लड़खड़ाती बहुत हुँ,
मगर क्या करू,
नादान हुँ न,
इसलिए मुस्कुराती बहुत हुँ
_कोमल साह
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