मुरली अधर पट-पीत कटि, मोर मुकुट छवि मथ्थ ।
वन विहरत कमलेश हरि,पथ्थ थ्थिरतिय सथ्थ।।
पथ्थ थ्थिर तिय सथ्थ थ्थिरकत,तथ्थ थ्थेइ थ्थेइ ।
नृत्यत्तहँ गहि गित्त त्तनन ,सहित्त- त्तहँ -सेइ।।
हास श्शुचि-परिहासस्सरस-विलास-स्सुरलिय।
याम म्मधि-बजिबाम्मनहरि ,श्याम-म्मुरलिय।।
©वही महाकवि बालगोविंद मिश्र"कमलेश" द्वारा विरचित,"अमृतध्वनी मंजरी" नामक पुस्तक से उद्धरित... ©
अमृतध्वनी