इक ज़रा सी बात पे रिश्ते बिखर गये,
मैं भी वो नहीं रहा, वो भी बदल गये
गर्दिशे हालात थी या मेरा कुसूर था,
इक मोड़ आया राह में रस्ते बदल गये
उनको भी तलाश थी शायद बहाने की,
अपने बनाये उसूलों से हम भी मुकर गये
सोचा था कि जियेंगे तो साथ जियेंगे,
वो ख्वाहिशें बदल गईं, सपने बदल गये
फिसलती इन राहों पर सँभल रहे थे हम,
आखिर तो इंसान थे, हम भी फिसल गये
यार का दामन इन्हें नसीब कहाँ था,
जो अश्क आँख से गिरे, मिट्टी में मिल गये..
©Prateek Singh
#Chalachal