मन
जिंदगी गुजार दी ना हमने तुमने लोगों ने हमारे मां बाप ने बस इस आस में की दूसरों के दिलों पर अपना एक प्यारा सा घर बन जाए फिर सदियों बीत जाने के बाद भी ना घर बन पाया ना दिल मिल पाया। सब बस आगे बढ़ते चले गए और आज भी बस मन में आस लेके ज़िंदगी में आगे बढ़ रहे है कई जिम्मेदारियों के साथ, कितना अच्छा होता ना अगर हम खुद के लिए जी पाते किसी और की जिंदगी में अपनी खुशी ढूंढने की बजाय हम खुद की जिंदगी को खुशनुमा बना पाते... दुख,आंसू,सांसों का उखड़ जाना अवसाद ये बस शब्द ही रह जाते जिनका कोई वास्तविक अर्थ होता ही नहीं। नादान है हम, हमें पता है कि मनचाहा कभी नहीं मिलता फिर चाहे वो लोग हो या चीज फिर भी ये हमारा मन बच्चों की तरह उसे पाने की चाह रखता है हम इसे रोक देना चाहते है लेकिन कुछ कर नहीं पाते मन में कसक देने वाली स्थिति जहां सब हाथों से फिसलता नजर आता है।
हां सुना है संयम को पाकर हम चीजों को छोड़ सकते हैं लेकिन संयम को पाने की कला हमें नहीं आती कैसी अनचाही स्थिति है न जहां मनचाहा कुछ मिल हि नहीं पाता। सोचो तो लगता है कैसे जीव है हम जिसके पास सोचने की क्षमता होने के बाद भी अपनी परिस्थितियों को ठीक से नहीं आंक पाए या जान ही नहीं पाए।
वैसे लोग कहते है कि कोशिश करने पर अपने मन को ढूंढा जा सकता है और जो मन संयम में हो जाए तो फिर मनचाहा न मिलने कि पीड़ा भी खुद पर परिहास लगने लगती है कि जिसके पीछे हम पागल थे क्या वो उस लायक था... हां बस
शर्त ये है कि हमारा मन पास होना चाहिए...हमारा मन...जिसे हम जैसे कमजोर दिल वाले लोग शायद ही समझ पाएंगे...।।
©priya prajapati
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