-: नयन नासमझ है :-
खुले ज़ुल्फ,
लाल बिंदी,
उफ़...
ऊपर से कहर ढाते झुमके,
ठहरी शाम..
सड़क अनजान,
मिलन हो..
पहुंँचे हैं तेरे शहर में,
रब से मांगता नहीं कुछ,
सिवाय तेरे,
सब कुछ तो है,
बस तुम नहीं मेरे घर में,
नयन नासमझ है,
तेरे कजरे से अलग देखना...
इसे कहां पसंद है,
अब तो आईने से भी इसे जलन है,
देखता है वो, जिसे देखने का हमें मन है...!
©Kundan Victorita
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