आज फिर से एहसासों के पन्ने पलटने लगें.
.वो शहर और शहर- ए-आशिक़ी फिर से
हवाओं के साथ गुनगुना कर कानो में कह गयी ..
क्या वो शहर ए आशिक़ी ख्यालों से दूर जा रहा है
या फिर तुम लौट आने की वादों से मुकर तो नहीं जा रही हो...
भला शहर -ए -आशिक़ी को एक याद कैसे बनाया जाए..💚
©कंचन
#City