रहने को सपनों के शहर में, मैं अपना गाँव छोड़ आया हूँ
अमरूद के बगीचे, वो पेड़ों की शीतल छाँव छोड़ आया हूँ!
फसलों से लहलहाते खेत, वो खेल का मैदान छोड़ आया हूँ
शुद्ध हवा, वो पतंगों वाला व्यस्त आसमान छोड़ आया हूँ!
वो मिट्टी के खिलौने, वो कागज की नाव छोड़ आया हूँ
सभी में मिलता था वो अपनेपन का भाव छोड़ आया हूँ!
वो चोखट, वो चूल्हा, वो पुश्तैनी मकान छोड़ आया हूँ
आ गया हूँ शहर में पीछे अपने एक जहाँन छोड़ आया हूँ!
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