ये दिल न जाने क्यों बेकरार रहता है।
आने से पहले तुम्हारे जाने का मलाल रहता है।
रात होते ही सुबह का इंतजार रहता है।
मिलोगे फिर सनम तुम ये ख्याल रहता है।
सुबह तो मगर पल मे खत्म हुई जाती।
नागिन सी शाम फिर डसने को आती है।
बिछोह के डर से बिरहन सिहर जाती है।
साजन की बाहों में वो सिमटी ही जाती है।।
स्नेह शर्मा
बूंदी, राजस्थान।
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