आसान मंज़िल काफी कुछ है बांकी अभी लम्बा सफर है
पन्ने बचे हैं कितने शायद लिखना बहुत है
स्याही चलेगी कितनी ये में नहीं जानता
अपनी कहानी में शामिल मुश्किलें बहुत है
वक्त की चाल समझनी है चल क्या रहा है
कयी शहर है राहों में अभी रस्ते बहुत है
जाना है किधर ये खुद वक्त तय करेगा
राहों में मुसाफिरों के लिए ठिकाना बहुत है
कौन जाने ये सफर कल तय हो कि नहीं
यहां पर दुश्मनी है काफी सिर्फ साथ ही कम है
©Vickram
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