अपाहिजता सी महसूस होती है , जब मै अपने ख्यालों को

"अपाहिजता सी महसूस होती है , जब मै अपने ख्यालों को शब्दों में नहीं पिरो पाती, मानो कुछ खटक रहा है, मगर क्या? इस कशमकश में मैं उस रात भी नही सो पाती, मै दिन भर हँसती हूँ, मुस्कुराती हूँ, और बातें तो बेहिसाब करती हूँ, मगर बेचैनी इस बात से होती है शायद, कि मैं अब पहले की तरह न जाने क्यों नही रो पाती। ©dr_seema"

 अपाहिजता सी महसूस होती है ,
जब मै अपने  ख्यालों को शब्दों में नहीं पिरो पाती,
मानो कुछ खटक रहा है, मगर क्या?
इस कशमकश में  मैं  उस रात भी नही सो पाती,
मै दिन भर हँसती  हूँ, मुस्कुराती हूँ, और बातें तो बेहिसाब करती हूँ,
मगर  बेचैनी इस बात से होती है शायद,
 कि मैं  अब पहले की तरह न जाने क्यों नही रो पाती।

©dr_seema

अपाहिजता सी महसूस होती है , जब मै अपने ख्यालों को शब्दों में नहीं पिरो पाती, मानो कुछ खटक रहा है, मगर क्या? इस कशमकश में मैं उस रात भी नही सो पाती, मै दिन भर हँसती हूँ, मुस्कुराती हूँ, और बातें तो बेहिसाब करती हूँ, मगर बेचैनी इस बात से होती है शायद, कि मैं अब पहले की तरह न जाने क्यों नही रो पाती। ©dr_seema

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