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सभा है कोई भी शामिल नहीं है
उजाला है मगर झिलमिल नहीं है
मेरे सीने में क्या तुम तोड़ लोगे
मेरे सीने में कोई दिल नहीं है
जो मेरे लफ्ज को पढ़कर भी पढ़ ले
कोई इतना भी तो काबिल नहीं है
दोनों पक्षों में एक मशवरा है
दोनों पक्षों को कुछ हासिल नहीं है
हर एक लहजे में एक तप्सरा है
कौन है जो यहां बातिल नहीं है
मेरी सीने में ही कातिल है विनय
मेरी मंजिल तो है साहिल नहीं है
©writervinayazad
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सभा है कोई भी शामिल नहीं है
उजाला है मगर झिलमिल नहीं है
मेरे सीने में क्या तुम तोड़ लोगे
मेरे सीने में कोई दिल नहीं है
जो मेरे लफ्ज को पढ़कर भी पढ़ ले
कोई इतना भी तो काबिल नहीं है
दोनों पक्षों में एक मशवरा है