ये दिवाली कैसे सार्थक है और क्यों मनाऊं मैं *अकेला*
चराग की लौ चीखती हुई वृद्धाश्रम से मंदिर तक आ रही है
कैसे बांटू मैं *राम* के घर आने की खुशी में मिठाई
इक बूढ़ी मां सड़क पर कहीं न कहीं भूखी सोई है
ये झूठे दिलासे अब देना मुझे पाप सा बोध होता है
अब अंधेरा ही मुझे सबसे अच्छा दोस्त लगता है.....
कवि अकेला
24 जनवरी 2024
©KAVI AKELA
#Path #राम