लग जाती है ठोकर कभी,संभलकर चलते हुए भी
छोड़ जाते हैं निशां कोई जख़्म, कभी भरते हुए भी
दूरियां बढ़ जाती है, बेइंतेहा मोहब्बत होते हुए भी
रिश्ते अजनबी हो जाते हैं कभी, साथ रहते हुए भी
मुरझा जाती है कोई डाली, पेड़ से जुड़े होते हुए भी
मगर,दर्द अपना बयां नहीं कर पाते, वो मरते हुए भी
प्यासे रह जाते हैं दरिया कभी, समंदर के होते हुए भी
थककर ख़ामोश हो जाते हैं वो, लहरों से लड़ते हुए भी
बेबसी अपनी,जो कह नहीं सकते, ज़ुबाँ होते हुए
नहीं मिलता दर्द से किनारा उन्हें, सब सहते हुए भी 3 !!
©Adv Nimit kumar
#Parchhai