बचपन मे 1 ₹ की पतंग के पीछे
2 की.मी. तक भागते थे...
न जाने कीतने चोटे लगती थी...
वो पतंग भी हमे बहोत दौड़ाती थी...
आज पता चलता है,
दरअसल वो पतंग नहीं थी;
एक चेलेंज थी...
खुशीओं को हांसिल करने के लिए दौड़ना पड़ता है...
वो दुकानो पे नहीं मिलती...
शायद यही जिंदगी की दौड़ है ...!!!
IG:- words_with_heart_
©Harish Labana
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
#makarsankranti