फर्क पड़ता है
फर्क पड़ता है
तब जब दिखाती हूँ
कोई फर्क पड़ता नहीं/
बहुत दुखता है
जब दिखाती हूँ
कोई दर्द नहीं/
बहुत कुछ कहना हो
तो ओढ़ लेती हूँ खामोशी/
पास आना चाहती हूँ
तो खुद को खींच लेती हूँ
तुझ से दूर कितने रोड़े अटकाती हूँ
खुद को तेरी समझने की कोशिशों में/
और फिर खुद ही लगा भी देती हूँ इल्जाम
कि तू तो मुझे समझता ही नहीं....
©Gυᴅιʏɑ ツ
फर्क पड़ता हैं .